Thursday 4 September 2014

Indira Awas Yojana Houses for SCs given to General Category People : Girish Lal , Tehri Garhwal


Written by Anil Singh
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We often talk about Corruption in India. But whenever a common man discusses corruption in his/her life, he takes himself out of the picture. The fact of matter is, our politicians are corrupt because we are corrupt, and vice versa.  An RTI Activist, from Tehri Garhwal, named Girish Lal, reveals how houses meant for Scheduled Castes in his village were allotted to General Category People. Below is his Letter for us to contemplate and Act on.

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मैं, गिरीश लाल, एक आर टी आई कार्यकर्ता (सूचना अधिकार कार्यकर्त्ता ) हूँ । इस नाते मैं आपको सूचित करना चाहता हूँ, कि मै सन 2012 से लगातार अब तक सूचना के अधिकार के तहत सूचनार्थी हूँ। मेरे द्वारा मांगी गई सूचना , उत्तराखण्ड टिहरी गढ़वाल के कीर्तिनगर ब्लॉक के तहत ग्राम सभा पाव अकरी से सम्बंधित है ।

मेरे द्वारा प्राप्त की गई सूचना में, केंद्र एवं राज्य सरकार की विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं के बंटवारे में भारी गड़बड़ियां पायी गयी ।मैं आपको अवगत करना चाहता हूँ, कि ग्राम सभा पाव अकरी में वर्ष 2013/ 2014 में इन्दिरा आवास योजना के अंतर्गत 11लोगों के नाम चयनित किये गये। जिनमे सारे लाभार्थी सामान्य एवं ब्राह्मण जाति के पाए गये। जबकि समस्त 11 आवास अनुसूचित जाति के लोगों के लिए थे।

मेरे द्वारा यह बात जब अनुसूचित जाति के लोगों के संज्ञान में लायी गयी , तो पता चला कि इस ग्राम सभा में वर्ष 2002 की बी पी एल सर्वे के आधार पर , वर्ष २०१२-१३ तक , सामान्य एवं ब्राहमण परिवारों के 36 परिवार फर्जी अनुसूचित जाति के आधार पर बी पी एल आई डी बनवाकर अनुसूचित जातियों के नाम की योजनाएं हड़प चुके हैं । इस कारण अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के नाम कुछ गिनी चुनी योजनाएं ही आ पाई ।

मैं आपको यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ , कि मेरे द्वारा इस सूचना के लिए अनुरोध करना कोई संयोग नहीं है ।  मेरे पिता जी जो अब 90 वर्ष के हो चुके हैं , अनुसूचित जाति की श्रेणी में आते हैं तथा श्रवण एवं दृष्टी विलांग भी हैं, इस गड़बड़ी के एक भुक्ततभोगी हैं ।  उनकी एंव गाँव के अन्य अनुसूचित जाति के परिवारों के इस अधिकार की चोरी मन मे निरंतर एक प्रश्न उत्त्पन्न करती है --  आखिर अन्याय की भी कुछ हद होती है। मैं यह पूछना चाहता हूँ की यदि मेरी बतौर प्रार्थी यह बात सत्य निकलती है तो क्या सरकार मेरे पिताजी को अब कक की क्षतिपूर्ति का भुगतान करेगी ? यह सवाल मात्र मेरा नहीं है । यह सवाल उन सबका है जिनके साथ अन्याय हुआ है ।

आज तक किसी जनप्रतिनिधि अथवा किसी सरकारी कर्मचारियों ने मेरे पिता की पेंशन लगाने का प्रयास नहीं किया । वहीं दूसरी ओर फर्जी तौर पर अनुसूचित जाति में सम्मिलित हुए लोगों के बीच फर्जीवाड़े की ऐसी बंदरबांट हुई कि एक ही परिवार के पति एवं पत्नी को एक ही पंचवर्षीय योजना में दो बार इन्दिरावास का आबंटन हुवा है। यह आश्चर्य की बात नहीं है, कि ऐसे समस्त लाभार्थियों ने इन्दिरावास के नाम पर मिली धन राशि को ब्लॉक के कर्मचारियों के साथ मिलकर गुपचुप अपनी जेबों में डाल लिया और मकान बनाने के नाम पर सरकार को ठेंगा दिखा दिया। अर्थात मकान मात्र फ़ाइलों में बन गए । ब्लॉक के कर्मचारियों ने भी अपनी नौकरी बचाने के नाम पर वफ़ादारी का ऐसा परिचय दिया, कि उन्हें भी आवासों की अनुपस्थिति का कोई मलाल नहीं है । क्योंकि आवासों की नीव तक नहीं डाली गई , इस कारण इंटरनेट पर मकानों की फर्जी फोटो खींच कर अपलोड कर दी गयी हैं।

इस गड़बड़ी से जब शासन प्रशासन को अवगत कराया गया तो उन्होनें भी खानापूर्ति के लिए नई टिहरी से जांच के लिए एक अधिकारी को ग्राम सभा के दौरे के लिए भेजा। जहाँ पहुँच कर उसने भी पाया कि कई सारे लोगों ने अभी तक मकानों की नीव तक नहीं रखी  है। इस अधिकारी ने यह भी पाया कि जो पात्र लोग हैं, वे हकीकत में सरकारी सेवाओं से वंचित हैं।और अपात्र लोग सरकारी सेवाओं का लाभ लेने में लगे हुए हैं।

जिसके पश्चात् इस वर्ष 2013/2014 वित्तीय वर्ष में जिन लोगों के बैंक खातों में इन्दिरावास की ४५ हज़ार रुपये की धनराशि जमा की जा चुकी थी उस पर रोक लगा दी गयी है । किन्तु इस गड़बड़ी के प्रशासन के संज्ञान में आये (१० मार्च 2014 ) से पूरे छः महीने होने को हैं और इस फर्जीवाड़े में सम्मिलित किसी भी कर्मचारी या जनप्रतिनिधि के ऊपर किसी तरह की कोई कार्यवाही नहीं की गयी है ।

इस छह माह की अवधि के दौरान एक नयी गड़बड़ी सामने आई है ।  जिन ११ व्यक्तियों के विरुद्ध इस वर्ष इन्दिरा आवास का गलत तरीके आवंटन का मामला सामने आया था, वे लोग ग्राम प्रधान पर पाँच हजार रुपये तो रिश्वत लेने का आरोप लगा रहे हैं। उनका आरोप है कि ग्राम प्रधान ने उन्हें गुमराह किया । ग्राम प्रधान ने इस व्यक्तियों को आशवस्त किया की ये आवास उन निर्धन अथवा अनुसूचित जाति के व्यक्तियों के हैं, जो इन्हें लेने में असमर्थ हैं । अतः ययादि वे कुछ पैसे एडवांस में दें तो आवास हम आपके नाम पर आवंटित कर सकते हैं।

इस विषय में जब ग्राम प्रधान से पूछा गया तो उसका स्पष्ट कहना था की इसमें उसका कोई दोष नहीं है। रिश्वत के पचपन हज़ार रुपये में से 18 हज़ार रुपये नई टेहरी भेजे गए हैँ ।

मैं जो भी बात यहाँ साझा कर रहा हूँ, इसकी मैं पूर्ण जिम्मेदारी लेता हूँ । मेरे पास इसके साक्ष्य मौजूद हैं । जिनकी प्रतिलिपि मैंने अपने ग्राम वासियों को भी दी है ।

महोदय आप अंदाजा लगा सकते हैं कि भ्रस्टाचार की जड़ें कहाँ तक फ़ैली हुई हैं। यदि आप स्थानीय मीडिया इन ज्वलंत मुददों को ज़ोर शोर से सामने नहीं लाएंगे और भोली भाली जनता की आवाज नहीं बनेंगे तो ये दबे कुचले एवं हाशिये पर बसर कर रहे लोग और हाशिये पर जाते रहेंगे। गरीब तथा अमीर के बीच की खाई और बढ़ती रहेगी । महोदय ये दशा केवल मेरे ही गाँव की नहीं है। बल्कि मेरे पड़ोस के गावँ में भी यही हाल हैं।

इस गड़बड़ी को आपसे साझा करने का लक्ष्य अराजकता फैलाना नहीं है । मेरा लक्ष्य इस मुददे को आपके मानस पटल पर अंकित करने का है , की किस प्रकार निर्धन एंव उपेक्षित वर्ग के हक़ की चोरी होती है । यह मामला एक राज्य स्तरीय जाँच का हक़दार है ।  ताकि गरीबों के नाम पर आये हुए पैसे का इस तरह से दुरपयोग न हो सके ।

और अधिक न लिखते हुए मैं आशा करता हूँ  कि इस अनियमितता ने आपको भी उतना की व्यथित किया होगा, जितना मैं अओउर मेरे वर्ग के ग्राम वासी हैं । आशा हैं आपके साथ से यह मुद्दा संतोषजनक कार्यवाही की ओर बढ़ेगा ।

प्रतिक्षा में, सधन्यवाद

प्रार्थी गिरीश लाल धन्यवाद

[ ज्यादा जानकारी के लिए सम्पर्क करें 09911849075 / 9717573426 ]

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2 constructive comments:

  • Unknown says:
    6 September 2014 at 21:45

    Han Yeh Hota Hua Ahya Han...
    Yeh Hamare Hi Gaon Ki Ghatana Hn...

  • Unknown says:
    7 September 2014 at 14:48

    हाँ मैंने भी जब ऑनलाइन चेक किया तो मुझे भी यकीन नहीं हो पा रहा है की आखिर ये उसी गांव के लोग है जो एक तरफ तो हरिजन जाती के लोगों से छुवा छूत करते है और वही दूसरी ओर सरकारी सेवाओ का लाभ उठाने के लिए खुद हरिजन जाती के वर्ग में आ गए.....
    जय भ्रष्टाचार ......
    जय उत्तराखंड .....